जयपुर: हनुमान बेनीवाल की पार्टी के गठन के साथ ही अब तक चल रही राजनीती और अब तक किये गए पोल व सर्वे गोल हो गए और पूरी तरह नए सिरे से किये जाने पड़ेंगे
भाजपा से असंतुष्ट जनता तीसरे मोर्चे की तरफ़ देख सकती है
राजस्थान में कई दशकों से चल रही दो दलों वाली राजनीति में तीसरा मोर्चा दोनो दलों के लिए फांस की तरह व जनता के लिए आस की तरह साबित हो सकता है। 
भाजपा के लिए राहत की ख़बर है
राजस्थान में सत्ता परिवर्तन का मुख्य कारण असंतुष्ट वोटर का बारी बारी से दोनो दलों को हराकर सबक सिखाना माना जाता है। विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि राजस्थान में वोटर किसी पार्टी को जिताने से जियादा किसी पार्टी को हराने के लिए ज़्यादा वोट करता है इस क्रम में असंतुष्ट वोटर बारी बारी से दोनों दलों को हरा रहा है। तीसरे मोर्चे के अस्तित्व में आ जाने के बाद वर्तमान असंतष्ट वोटर को भाजपा से कांग्रेस की तरफ पलायन करने के बजाय तीसरे मोर्चे में वोट करने का मौका मिलेगा जिससे भाजपा काफी हद तक खुश हो सकती है
घनश्याम तिवारी तीसरे मोर्चे में चाणक्य की भूमिका में बैठे हैं
अभी तक राजस्थान में तीसरे मोर्चे को लेकर कई दफा कोशिशें हुई है पर वो पूरी तरह फ्लाप रही हैं। इस बार भी देरी होती देख यही क़यास लगाए जा रहे थे मगर तीसरे मोर्चे में घनश्याम तिवाड़ी का प्रकट हो जाना नई तरह की राजनीति की नींव रखता है जहॉं एक नई पार्टी का उदय ही दूसरी पार्टियों के समर्थन से हुआ है। 
समाजवादी पार्टी के विलय होने से मुस्लिम वोटर को भी तीसरा मोर्चा लुभा सकता है
ऐन वक्त तक बसपा का बेनीवाल से गठबंधन तय माना जा रहा था मगर अचानक समाजवादी पार्टी की साईकिल पंडाल में आ गई जिसकी वजह से राजनैतिक ड्रामा तेजी पकड़ गया। हरियाणा में बसपा का इनेलो के साथ आ जाने पर सभी मान रहे थे कि राजस्थान में भी जाट राजनीति के स्टार बेनीवाल के साथ बसपा का आना तय है मगर बसपा की जगह सपा मंच पर दिखाई दी और अखिलेश यादव जिंदाबाद के नारे मंच से लगवाए गए। देखा जाए तो बसपा और सपा दोनों का ही राजस्थान में कोई बड़ा आधार नहीं है मगर सपा के बेनीवाल के साथ दिखाई देने पर मुस्लिम वोटरों हो तीसरे मोर्चा लुभावना लग सकता है। 
 

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