मीडिया की सच्चाई स्वीकारने में रवीश ने पहली बार हिम्मत दिखाते हुए मीडिया को डरपोक व भांड कह दिया। देखिये करनी सेना पर भांड मीडिया कहने पर रुदाली करने वाले आज खुद भांड शब्द का प्रयोग करने पर क्यूं मजबूर हो गए। सोशल मीडिया पर NDTV को सीकर टाईम्स जैसे छोटे मोटे चैनल ही आए दिन पछाड़ते रहते हैं इसके चलते छोटे शहरों और कम रिसोर्स वाले पत्रकारों की बढती साख से बड़े चैनल की सुरक्षा में बैठे पत्रकारों को भयानक फर्सट्रेशन होती रहती है। देखना बाकी है रवीश में खतरा उठाने की क्षमता कितनी है क्योंकि रेल के डिब्बे का AC खराब होना या बस कंडक्टर द्वारा टिकिट के दो रुपये ज्यादा ले लेनी जैसी सेफ स्टोरियों से आगे जाकर कुछ सनसनीखेज करने का माद्दा अभी तक कभी दिंखा नहीं है।
रवीश में हिम्मत होती तो वो भड़ास के कार्यक्रमों में आने की हिम्मत करते जहॉं उन्हें आईना दिखाने वाले कई मिल जाते। जहॉं अनिरुद्ध बहल, यशवंत सिंह जैसे पर्मानेंट खतरों के खिलाडियों के बीच उसी दबी कुचली व भांड मीडिया के भ्रमजाल से आने वाले रवीश अपने हीरो आईकन स्टेटस से सीधा पैदल फील कर जाते।
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