राहुल गाँधी का काफिला जब इंदिरा गाँधी स्टेडियम की तरफ जा रहा था रस्ते में उनको रुकना पड़ता है और जैसे ही जनेऊधारी राहुल गाँधी को पता पड़ता है कि पत्रकार राजेंद्र व्यास स्लिप हो गए हैं तो तुरंत वो और जानकारी लेने की कोशिश करते हैं तो पत्रकार तुरंत स्तिथि को भांपकर लपक लेता  है और गाड़ी में सवार हो जाता है, रस्ते में राहुल उसका हालचाल पूछते हैं और फर्स्ट ऐड देने की कोशिश करते हैं| कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष के हाथों फर्स्ट ऐड लेते हुए उसकी ही गाड़ी में बैठकर लम्पट पत्रकार की बांछें खिल जाती हैं और जनम तर हो जाता है अब वो और आगे की प्लानिंग कर राहुल गाँधी से एक बार और घाव पोंछने की एक्टिंग करने को कहता है, वैसे जो जानते नहीं वो जान लें कि दिल्ली में बिना हेलमेट चार फुट भी गाड़ी चलाना मुमकिन नहीं इसके चलते सर पर चोट लगना हास्यास्पद है

पत्रकार नहीं लम्पट 

खैर ऊपर से नीचे तक भगवान की मेहरबानी से गौड़ का दिन स्वर्णिम चल रहा था और उनके आग्रह पर राहुल ने दोबारा से भी उनका माथा रुई से पोंछ दिया जिसकी रिकॉर्डिंग पत्रकार गौड़ के मोबाइल में आ गई, पूरी शिद्दत से पत्रकारिता के घाघ वाले भाव देते हुए लम्पट व्यास ने वीडियो बना लिया और अब वो अपने आप को महान पत्रकारों की श्रेणी में सबसे आगे बैठा हुआ पाने लगा मगर ये सफर दो चौराहे बाद AIIMS पर ख़तम हो जाता है जहाँ अचानक से गौड़ साहब सड़क पर आ जाते हैं, ये उनके लिए  धक्का जरूर रहा होगा

बड़ी बात हो गई, इसको भुनाएं कैसे 

चोट कितनी लगी वो तो फर्जी ने तब ही बता दिया था जब नाटक कर रहा था मगर अब उसके मोबाइल में वो क्लिप है जहाँ इतने बड़े आदमी ने उसको रुई से पोंछा था तो आज पूरा दम लगाकर इसको कैश करा जाएगा क्यूंकि मीडिया में वैसे भी पांच फ़ीसदी जनसँख्या वाले उसकी ही जाति के लोग अस्सी प्रतिशत तक भरे पड़े हैं ऊपर से खबर का निर्धारण तो सबको पता है , एक ही समाज करता है | चलो कैश किया जाए

मीडिया में राहुल की वाह वाह हुई मगर दक्षिणा कहाँ है 

यजमान की बड़ाई हो गई मगर दक्षिणा नहीं मिली ऊपर से AIIMS से वापस स्कूटी लेने बस पकड़कर जाना पड़ा ये तो हद है, अब ये क्लिप में छुपी सच्चाई एक सच्चा पत्रकार सामने लाएगा और वहां से कुछ न कुछ मिल जाए तो अपना भी इलेक्शन निकल जाएगा इसलिए ये क्लिप अब विरोधी पार्टी की खिदमत में दी जाए

राहुल गाँधी ने कुछ नहीं कहा मगर निशाना वही 

लम्पट पत्रकार को लिफ्ट देना और उसके कहे करने का रिजल्ट क्या होता है वो राहुल समझ गए होंगे, ये वही मीडिया है जो इस समय जिस हालत का शिकार है उसकी नींव सत्तर साल पहले राहुल के पूर्वज ही रख गए थे, ऐसा समय कभी आया ही नहीं कि मीडिया स्वतंत्र होकर अपनी खबरें बना सके और छोटे बड़े ड्रामे होते होते बड़ी बड़ी साजिशें अब मीडिया में खेली जाती हैं

पत्रकार अगर गौड़, पाण्डे , राजपुरोहित होता है तो सब उसके आगे पीछे लग जाते हैं 

ऐसे केस भरे पड़े हैं जहाँ केवल एक ही जाति के किसी पत्रकार की स्कूटी स्लिप हो गई या उसकी चाय टेबल से निचे गिर गयी तो मीडिया फ्रंट फुट पर खेलता है मगर पत्रकार यशवंत चौधरी के साथ इतनी बड़ी घटना हुई जिसे एक करोड़ लोगों ने देखा तो यही जातिवादी मीडिया उसके ही खिलाफ हो गया और पुलिस के पास जाकर उल्टा मांग करने लगा कि इसको कैसे भी केस में फंसाओ, गिरफ्तार करो क्यूंकि न ये दक्षिणा लेता है और न इसकी वजह से हम ले पा रहे हैं | इतना ही नहीं 12 लाख लेकर सीकर टाइम्स का पेज बंद करवाने के लिए दो दो FIR भी करवाई साथ ही शहर भर में हर कहीं जाकर एलान करते रहे चौधरी को हम शहर से भगा कर रहेंगे | अगर यशवंत चौधरी ने किसान के घर जन्म नहीं लिया होता तो जरूर भाग जाता मगर यही समस्या अब बड़ी हो गयी है , एक के बजाय पचास से ज्यादा चौधरी जैसे और खड़े हो गए हैं जो मीडिया के  दक्षिणापंथी को रोज़ एक्सपोज़ कर रहे हैं


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