राजस्थान के चिकित्सकों ने पिछले दिनों तैंतीस सूत्री मांगों को लेकर हड़ताल की। जनता को आयुष डॉक्टरर्स के हवाले छोड़ दिया। सरकार ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की। आपरेशन टाल दिए गए। सरकार और संघ के बीच समझौता हुआ जिसमें सरकार ने संघ की सभी बात मान ली गयी। डाॅक्टर्स काम पर लौटने लगे।
चिकित्सक संघ अपनी मांगों को मूर्त रूप देने की बात पर अड़ा हुआ था। सत्याग्रह का रास्ता अपनाया। चिकित्सालय के बाहर टैंट लगाकर चिकित्सक रोगियों को देखने लगे। सरकार की बेरुखी देखकर चिकित्सकों ने 18 दिसंबर से कार्य बहिष्कार की तैयारी करती थी कि सरकार ने 26 दिसंबर से ही रेस्मा के तहत चिकित्सकों की धरपकड़ शुरू कर दी। सरकार की इस कार्रवाई के डर से चिकित्सक अज्ञातवास पर चले गए।

सरकार की वादाखिलाफी से चिकित्सा व्यवस्था बेपटरी हो गयी। चिकित्सा मंत्री की हठधर्मिता के चलते रोगी परेशान हो रहे हैं। भय से शासन नहीं किया जा सकता । संवाद से ही किसी समस्या का समाधान संभव है। सरकार अपने किए वादे से मुकर गयी परिणामस्वरूप चिकित्सककों में असंतोष व्याप्त है। चिकित्सक संघ भी कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है। संघ को चाहिए कि वो सत्याग्रह के रास्ते पर ही चलते हुए सरकार से अपनी मांगे मनवाएँ। सरकार को चाहिए कि वो जनता को हुई परेशानी के लिए माफी मांगे। ऐसे संवेदनशील मुद्दों को सरकार गंभीरता से लेवें। सरकार और जनता के बीच चिकित्सक सेतु का काम करते हैं।

चिकित्सकों की छवि गुंडों जैसी बनाने में सरकार की बड़ी भूमिका है

चिकित्सकों को भारतीय समाज भगवान मानता है मगर बार-बार की हड़ताल से उनकी छवि गिरी है। सरकार को चाहिए कि चिकित्सक संघ की मांगों को तत्काल लागू कर जनता के राहत दिलाएँ।

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