ह्रदय विदारक तसवीरें सोशल मीडिया में फैली हुई है जहाँ ऐसे किसानो के पैर पूरी तरह जख्मी हालत में देखे जा सकते हैं जो नंगे पैर चलने की वजह से इस हालत में हैं क्यूंकि उनको लाल टोपी और लाल झंडा तो खरीद के दे दिया गया था मगर लाल चप्पल नहीं दी गई थी

किसान सभा का लॉन्ग मार्च 

देश में कई किसान संगठन हैं जो समय समय पर रैली करते रहते हैं मगर उनके संगठन न तो किसी शहर कको बंदी बनाते हैं और न ही कार्यकर्ताओं को इस हालत में प्रदर्शन करने देते हैं जिसकी वजह से उनके शरीर को गहरे जख्म हों मगर AIKS इनसे अलग है

किसान किसी दल के झंडे का मोहताज नहीं 

किसान को प्रदर्शन करने के लिए न लाल रंग के झंडे की जरुरत होती है न किसी और रंग के, वो बिना किसी राजनितिक दिखावे के भी प्रदर्शन कर सकता है मगर फिर भी जब उनको कोई राजनितिक दल अपना हथियार बनाकर भेजता है तो कुछ खर्चा करना जरुरी हो जाता है, टोपी और झंडे बड़े आर्डर के साथ बनाये जाते हैं वो हर किसान अपने घर से लेकर नहीं आता तो ये दिखावा बंद करो

किसान परेशान है मगर दल सिर्फ उनको हथियार बनाकर सत्ता हासिल करना चाहते हैं 

ऐसा क्यूँ है कि जो किसान सभा सीकर में आन्दोलन कर रही है वो किसान सभा केरल में आन्दोलन नहीं कर रही संपूर्ण कर्जे के खिलाफ? क्या वहां का एक भी किसान ये कह सकता है कि उसको कर्जमाफी नहीं चाहिए? क्या वहां किसान आत्महत्या नहीं कर रहे ? किसान सभा अगर गैर राजनितिक संस्था होने का दिखावा करती है तो वो राजनितिक पार्टी के ऑफिस से क्यूँ संचालित होती है, उनका नेता राजनितिक पार्टी का क्यूँ है उसको तो गैर राजनितिक होना चाहिए| पिछली बार हारने के बाद अमराराम और पेमाराम को इस बार ही संपूर्ण कर्जा माफ़ करने की याद आई है और वो चुनाव में आयेंगे ये बच्चे बच्चे को पता है

प्रदर्शन के मुखियाओं की होती है जिम्मेदारी 

अगर कहीं भी प्रदर्शन होता है तो वो मुखिया विहीन नहीं होता और ऐसे में प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं की हालत क्या है इसका ख़याल भी मुखियाओं को ही करना होता है | इतना लम्बा पैदल चलने ने किसी की जान पर बन आ सकती है और ये साफ़ साफ़ जान से खिलवाड़ है |

प्रदर्शनकारियो को वापस घर भेजने के लिए चलायी गई स्पेशल ट्रेन 

लॉन्ग मार्च शुरू कैसे होगा इसका तो इंतजाम कर लिया गया था मगर वापसी के समय की क्या रसद जुटाई गई थी, वापसी का इंतज़ाम सरकार ने करवाया तो किसान वापस घर जा सके

सीकर को बंधक बना रखा था 6 दिन 

जब आन्दोलन सीकर में हुआ था तो सीकर 6 दिन बंधक बनकर रहा था, पूरे सीकर के सभी रस्ते बंद कर दिए गए थे, मरीजों को महंगी एम्बुलेंस लेकर बड़े शहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था और एम्बुलेंस वालों के वारे न्यारे हो गए थे, एम्बुलेंस वालों ने भी आन्दोलन को समर्थन दिया था | जो परिवार दूध के लिए सरस या मदर डेरी पर निर्भर थे उनको अपने बच्चों के देखकर रोना आ रहा था, दूध सौ रूपये लीटर बिक रहा था जिसकी वजह से आस पास से दूध सप्लाई करने वालों के मजे थे मगर ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालक परेशान थे, शहर में दवाइयों का स्टॉक ख़तम हो रहा था, मजदूरी का नुक्सान हो रहा था | पूरे शहर में रोष व्याप्त हो रहा था

मजदूर की मजदूरी मर गई, मालिक उसको आन्दोलन में पैसे क्यूँ देगा 

हज़ारों ट्रक जो शहर के आसपास फंस गए थे वो काम पूरा करते हैं तो उन्हें पैसे मिलते हैं, खाली बैठे रहते हैं तो उनको पैसे नहीं मिलते और इतने दिन बेचारे खाली बैठे थे, उनके जेब में लाये पैसे ख़तम हो गए थे, उनका रोना नहीं रुक रहा था ऐसे में शहर में कुछ भले लोगों ने उनकी मदद की जो खुद सोच रहे थे कि कुछ दिन और बंधक रहा सीकर तो उनका भी यही हाल होगा |

केरल में नहीं है संपूर्ण कर्जा माफ़ जहाँ है कम्युनिस्ट सरकार 

ऐसा क्यूँ है कि जो कम्युनिस्ट केरल में किसानो का संपूर्ण कर्जा माफ़ नहीं कर सकते और कहते हैं कि इसकी वजह से आर्थिक परेशानी आ जायेगी और सरकार नहीं चल पाएगी वो राजस्थान में संपूर्ण कर्जा माफ़ करने का आन्दोलन करते हैं 

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