सीकर: हाल यह हो गया है कि कहीं पर कोई भी पोस्ट हो, जहाँ पर नये पुराने नेता अपने अपने विकास कार्यों के बारे में जनता से संवाद क़ायम करना चाहते हो वहाँ पर उनके समर्थक कम और हनुमान बेनीवाल के समर्थक गुट बनाकर ज़्यादा पहुँच जाते हैं। 
मंत्री, विधायक सभी सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से बचते दिखते हैं
अजीब माहौल बन गया है जहाँ पर राजनैतिक पार्टियों को बढ़ चढ़ कर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने और अपना प्रचार प्रसार करने में सबसे ज़्यादा आनंद आता था वहाँ पर हालात कुछ ऐसे बन गए हैं और लगता है लोग पोस्ट डालने से कतराने लगे हैं। शेखावाटी के सभी राजनैतिक दलों और नेताओं पर दो साल से एक ही बात देखने को मिली है कि सभी की लोकप्रियता में बेमैल उतार चढाव दिखाई दे रहे हैं, जिसका बड़ा कारण किसान के हाथ में मोबाईल आना भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से माना जाना चाहिये। 
सोशल मीडिया पर कुल भागीदारी में इज़ाफ़ा हुआ है
राजनैतिक दलों की पॉपुलैरिटी ग्राफ पर नज़र रखने वाले को दिल्ली के एक विशेषज्ञ बताते हैं कि राजस्थान में राजनीति के प्रति सोशल मीडिया पर आमजन का रुझान पिछले 3 साल में 100 फ़ीसदी तक बढ़ गया है, मगर ट्रेंड को देखते हुए ऐसा लग रहा है जैसे इन सबका फायदा युवा नेता ज्यादा ले जा रहे हैं। 
समर्थक कहीं भी जाकर Hb लिख आते हैं
पिछले लोकसभा चुनाव के समय मोदी का जुनून लोगों के सर पर इतना तगड़ा था की वो किसी भी जगह, कोई भी पोस्ट, कोई भी विडियो देखते थे वहाँ पर “हर हर मोदी” लिख आया करते थे फ़िलहाल वैसा जुनून बेनीवाल के समर्थकों में भी दिखाई दे रहा है जो किसी भी राजनैतिक पोस्ट के नीचे हनुमान बेनीवाल, Hb या तीसरा मोर्चा लिख देते हैं।  इन सबके चलते कई ग़ैर राजनीतिक मुद्दे और संस्थानों पर भी हनुमान बेनीवाल के समर्थकों ने क़हर बरपा रखा है और ऐसे लगता है जैसे उन्हें कोई मतलब नहीं क्या पोस्ट है, क्या मुद्दा है, दिन है या रात है,  बस मतलब उन्हें हनुमान बेनीवाल के समर्थन से हैं। 
सीकर हुंकार रैली के बाद हुई अन्य राजनैतिक रैलियों, सभाओं में दिखा असर
सीकर में हुंकार रैली के समय हनुमान बेनीवाल ने भीषण गर्मी में ज़बरदस्त तरीक़े से जन संपर्क क़ायम किया था जिसका साइड इफेक्ट यह रहा कि उसके बाद होने वाली राजनैतिक सभाओं में उस दर्जे का जनसम्पर्क क़ायम नहीं होने के कारण लोगों ने भाग लेना है बड़े स्तर पर कम कर दिया है। हनुमान बेनीवाल ने लोगों को ऐसी लत डाल गया है कि जब तक उन्हें उनकी मोहल्ले में जाकर ख़ुद राजनेता नहीं बुलाए तब तक जैसे लोग घर से बाहर निकलना ही पसंद नहीं कर रहे हैं। 
जहॉं जहॉं बेनीवाल पहुंचा वहॉं वहॉं राजनैतिक दलों के पास यही उपाय बचा है
बेनीवाल की ताबड़ तोड़ सभाओं और वोटरों से सीधे जुड़ने की स्टाइल से वोटर VIP बन गया है और उस VIP वोटर को अगर राजनैतिक पार्टियों को अपने स्तर पर बेनीवाल की तरफ़ जाने से रोकना है तो एकमात्र उपाय फ़िलहाल जो नज़र आ रहा है वह यह है कि 40 साल से कम उम्र के युवाओं को राजनीतिक पार्टियां तरजीह दे ताकि वो अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए बड़े फेरबदल को रोक पाएें। 
मोदी के उर्जावान व्यक्तित्व को मिनिमम क्राईटेरिया बना दिया है वोटर ने
राजनैतिक पार्टियां बदलाव को बहुत धीमी गति से अपना पातीं हैं मगर राजनीति में नरेंद्र मोदी की 2014 वाली लहर के बाद कई बदलाव आए हैं  जिसके बाद कई चुनावों के नतीजे विशेषज्ञ रायों के बिलकुल उलट आए हैं। इन सब में नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और ताबड़तोड़ रैलियों का कमाल था जिसकी अब वोटरों को आदत पड़ गई है और नेता में ऐसी उर्जा देखना वोटर पसंद करता है जिसके सामने कम ऊर्जा वाले नेताओं को जातिगत समीकरणों के बाद दूसरे नंबर पर महत्व मिल रहा है। राजस्थान चुनावों में नरेंद्र मोदी की ऊर्जा का असर पार्टी के ही ख़िलाफ़ जा सकता है क्योंकि जिस ऊर्जा की आदत मोदी ने वोटरों को लगा दी है  उस उर्जा को सामान्य वोटर अपने नेता में ढूँढने लग गया है और ज़्यादातर वोटर को वह ऊर्जा अपने नेता में दिख नहीं रही है जिसका पूरा फ़ायदा हनुमान बेनीवाल उठा रहा है और यह भाजपा के लिए ही सिरदर्द वाली स्थिति है। 
क्या रह सकता है ट्रेंड
चुनाव में घोषित होने वाले उम्मीदवारों की लिस्ट में इस चुनाव के दौरान जो बात देखी जाएगी वो साफ़ तौर पर यह रहेगी की उम्मीदवारों की औसत उम्र दो साल से पाँच साल तक कम रहने वाली है और चुनाव जीतने वालों की उम्र का औसत तो कम दिखने की पूरी पूरी संभावना है। 



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