आधा सच होता है पूरा झूठ और ये बात साबित हो जाती है टीबडा वायरल मेसेज के छुपाये गए झूठ से: पढ़िए ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
सुबह से वायरल हो रहा था मैसेज और जिस प्रकार उसमें भाषा का प्रयोग किया गया था उसे साफ ऐसा लग रहा था जैसे एक डॉक्टर ने न जाने किस प्रकार अपने मरीज के साथ में शोषण किया है और हमें भी हजारों की संख्या में मैसेज मिलने शुरू हो गए थे जिसमें हमसे अनुरोध किया गया था कि हम भी इस मैसेज का साथ दें और इसको फैलाएं, मगर एक जिम्मेदार पोर्टल होने के नाते हम बिना दूसरा पक्ष जाने कुछ भी लिखे जाने के खिलाफ हैं और दूसरों से भी अनुरोध करते हैं कि जब तक नहीं सच्चाई का पूरे तरीके से पता ना हो इस तरीके की मैसेजेस को शेयर करके किसी की मानहानि करने से बचें
जानिए क्या छुपाया गया था आपसे उस वायरल मेसेज में
वायरल मैसेज में इस बात को साफ तौर से छुपाया गया था कि मरीज सीधा टीबड़ा अस्पताल नहीं आया था बल्कि डॉक्टर कुमावत के पास पहले गया था जिन्होंने अपनी पर्ची में पहले ही यह लिख दिया था की आंख बचने के चांस ना के बराबर है हमने डॉक्टर कुमावत की लिखी हुई पर्ची को देखा और उसमें साफ साफ लिखा हुआ था “poor prognosis” यानी इस बात को छुपाया गया कि जिस डॉक्टर के पास मरीज को लेकर उसके घरवाले गए थे उस डॉक्टर ने पहले ही घोषित कर दिया था कि मरीज की आंख बचने की संभावनाएं ना के बराबर है| इसके बाद मरीज के घरवाले उसको लेकर टीबड़ा अस्पताल आए जैसा अक्सर सभी लोग करते हैं कि वह बड़े अस्पताल जाकर अपने परिजनों का उपचार करवाने की कोशिश करते हैं और यह आस करते हैं कि शायद यह वाला डॉक्टर कुछ अलग बताएं और शायद उनका परिजन स्वस्थ हो जाए मगर डॉक्टर टीबडा भी ने भी मरीज की जांच कर उसमें यह लिखा हुआ था कि आँख बचने की संभावना न के बराबर है इसके अलावा आंख में मवाद का पड़ जाना और इन विट्रो एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल को भी डॉक्टर ने अपनी सबसे पहले वाली पर्ची में ही लिख दिया था, यानी डॉक्टर टीबड़ा ने भी पुराने वाले डॉक्टर की बात पर मुहर लगाई की आंख बचने की संभावना ना के बराबर है और सामान्यतः डॉक्टर ऐसा ही कहते हैं, कभी कोई डॉक्टर ऐसा नहीं कहता कि इसकी आंख तो गई
ब्लैक मेलिंग कर पैसा ऐंठने की हो रही है कोशिश
डॉक्टर ने बताया खास तौर पर वायरल मैसेज में तथ्यों को छुपाकर झूठ को सच बनाकर पेश करने की जो कोशिश करी गई है उसके द्वारा उन्हें ब्लैकमेल कर ज्यादा से ज्यादा कंपनसेशन के नाम पर फिरौती मांगने की कोशिश करी जा रही है, अन्यथा उनसे पहले वाले डॉक्टर की राय को मैसेज में क्यों नहीं बताया जा रहा है
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