चुनाव आते आते जोड़ तोड़ का गणित अब सामने आने लग गया है जिसका अंदाज़ा विशेषज्ञों ने पहले ही लगा लिया था और हाल में लिए एक इंटरव्यू में सीकर टाइम्स ने अमराराम से ही पूछ लिया था कि "क्या माकपा और भाजपा में कोई व्यवहार तो नहीं है?" (विडियो हमारे youtube पर उपलब्ध है)
जाट परंपरागत तरीके से कांग्रेस को समर्थन देते आये हैं
जैसे क्षत्रिय वोट का बड़ा हिस्सा आज़ादी के बाद से ही भाजपा के पाले में जाते रहे हैं वैसे ही जाट वोट कांग्रेस को जाते रहे हैं और दोनों पार्टियों ने जाट-राजपूत को अपनी अपनी तरफ रखने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी है | नए वोटरों से पूछें तो वो जानते हैं दुसरे का विरोध करना है मगर मुद्दों का अब उन्हें ज्ञान नहीं और शुरू कहाँ से हुआ था वो भी पता नहीं | सोशल मीडिया के युग के आने से पांच-सात परसेंट के शिफ्ट पर विशेषज्ञ सहमत रहते हैं मगर इसके आगे कोई नहीं मानता|
माकपा समर्थकों में बड़ा हिस्सा गरीब जाटों का है
संपन्न जाटों का मत विभाजित है मगर गरीब जाटों का रुझान जिले में माकपा अपनी ओर खींचने में कामयाब रही है | इसके अलावा मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा भी कांग्रेस या माकपा के हिस्से ही जाते रहे हैं | सभी समुदाय के संपन्न वोटरों की बात करें तो उनका मत लोकल मुद्दों से आगे राज्य स्तरीय मुद्दों तक जाता है जिसके बारे में विशेषज्ञ सहमत रहते हैं |
पहली बार अमराराम राम जन्म भूमि विवाद को कांग्रेस के खिलाफ मुद्दा बनाकर अल्पसंख्यक समुदाय के प्रिय बने थे
जब अमराराम पहली बार विधायक बने थे तबसे लेकर अबतक उनके मुद्दों में कांग्रेस द्वारा विवादित ढाँचे को गिराए जाने पर कड़ा एक्शन नहीं लेना रहा है | अनेक सभाओं में जो अल्पसंख्यक समुदायों के साथ की गई हैं वहां अमराराम ने पूरा दोष कांग्रेस पर लगाकर काफी हद तक समर्थन भी हासिल किया, अपने इंटरव्यू में भी वो कभी इस मुद्दे को सामने लाना नहीं भूलते, उनके अनुसार कांग्रेस इसका विरोध करनी की क्षमता ही नहीं रखती |
मोदी की प्रचंड लहर में भी दांतारामगढ़ में कांग्रेस के नारायण सिंह जीते थे
पिछले विधान सभा चुनाव में मोदी की सिर्फ आंधी ही नहीं बल्कि तूफ़ान, सुनामी जो कहें वो चल रहा था और अमराराम खड़े थे दांतारामगढ़ से जहाँ पर जनता ने अपना फैसला दे दिया | साठ हज़ार से ज्यादा मत लेकर भी कुछ सौ वोटों से ही नारायणसिंह जीत पाए और अमराराम को मिले तो केवल तीस हज़ार वोट| दांतारामगढ़ में अनेकों लोगों से बात हुई जो ये मानते हैं कि अमराराम अगर खड़े नहीं होते तो उनके वोट भाजपा नहीं जाकर कांग्रेस की तरफ ही जाते |
दांतारामगढ़ में बाहरी व्यक्ति दो बार विधायक नहीं बनेगा : पूर्व विधायक स्वर्गीय जगन सिंह जी बाटड
दांतारामगढ़ का इतिहास रहा है कि वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति दो बार चुनाव नहीं जीत पाया और ये बात वहां के ही एक पूर्व विधायक स्वर्गीय जगन सिंह जी बाटड ने मुझे कही थी | उनके अनुसार वहां के लोगों ने उन्हें भरपूर स्नेह दिया और उनका कार्यकाल बेहद अच्छा रहा मगर साथ ही चुनावों से पहले जनता ने उन्हें मना कर दिया था दोबारा चुनाव लड़ने से | अमराराम दांतारामगढ़ के लिए बाहरी हैं और उन्हें अभी तक एक ही बार जनता ने जिताया है
रसीदपुरा मंडी का मुद्दा बनाकर लच्छमनगढ से अमराराम के चुनाव लड़ने की अफवाहें जोरों पर
राजनेता चाहे किसान के भेष में हो या व्यापारी के भेष में वो राजनीती ही जानता है और उनकी नज़र हमेशा सत्ता में रहने वाली पार्टी से अच्छे संबंधों पर लगी रहती है | ख़बरों की माने तो नीम का थाना और लच्छमनगढ में से एक पर अमराराम के चुनाव लड़ने की अफवाहें आ रही थी मगर प्रधानमंत्री की रैली के समय नीम का थाना के शक्ति प्रदर्शन और हाल में हुई कुछ घटनाओं ने नीम का थाना में दोबारा से भाजपा की गणित बिना तीसरी पार्टी के ही पूरी होती दीख रही है ऐसे में जब रसीदपुरा प्याज मंडी का मुद्दा अमराराम के पास है तो लच्छमनगढ में चुनाव लड़ने का फायदा अमराराम को मिल सकता है और सूत्रों के मुताबिक इसकी रूपरेखा पर काम चल रहा है |
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