बात 1996 की है मगर लगता है जैसे कुछ ही दिन पहले की हो जब देवेगौड़ा सदन में खड़े होकर अपना प्रधानमंत्री के तौर पर अंतिम भाषण पढ़ रहे थे और उनके भाषण के अंत के शब्द कांग्रेस के लिए खुली चुनौती थी उन्होंने भाषण ख़त्म करते हुए कहा था “I will show you what H D Devegouda is” मुझे डायलॉग पूरी तरह अमिताभ के डायलॉग की तरह अंदर तक फील हुआ था। ![](https://lh3.googleusercontent.com/-zltoorUg0wY/Wvsc7Y5aGUI/AAAAAAAAN_E/sEQ_QUo8aG4rTMiCWAW_5qU24NLYx7TfgCHMYCw/s5000/%255BUNSET%255D)
उस समय राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत की सरकार थी और किन्हीं कारणों से मेरा कांग्रेस के बड़े लीडरों के पास आना जाना था। देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए कांग्रेस पार्टी ज़िम्मेदार थी जिसमें पहले समर्थन देकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया और फिर अचानक से ही अपना समर्थन बिना किसी बात के वापस ले लिया। मेरी राजनीति के तौर पर विचारधारा विकसित नहीं हुई थी और देवेगौड़ा की वो मार्मिक हुंकार तब से लेकर आज तक मेरे कानों में गूंजती रहती थी। कई बार मैं ये भी सोचता था की बड़ी पार्टियों के आगे छोटे मोटे लीडरों की अखिल हस्ति ही क्या है और क्या ऐसा कभी हो पाएगा कि देवेगौड़ा सही में वो कर के दिखाते हैं जिसके बारे में उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के अंतिम शब्दों में कहा था।
उसी शाम एक आयोजन में मेरी कांग्रेस के उस समय के क़द्दावर नेता नटवर सिंह और डॉक्टर चंद्रभान से भी मुलाक़ात हुई उनकी टिप्पणियां भी मैं कभी भूल नहीं पाया मगर निजी मुलाक़ात में कही गई बातें सार्वजनिक करना ग़लत रहेगा।
समय समय की बात है कांग्रेस भी आज हाशिये पर आ गई है नटवर सिंह बहुत पहले ही कांग्रेस से निकाले जा चुके हैं और देवेगौड़ा के पास आज अपनी उसी बात को मनवा देने का पूरा मौक़ा था जो सीता राम केसरी में कांग्रेस का समर्थन वापस हटवाकर देवेगौड़ा की भरे सदन में सरकार गिरायी थी।
वैसे इतिहास की बातों में दर्ज है कि कांग्रेस के समर्थन वापस खींचने के बाद भाजपा ने समर्थन देने का फ़ैसला लिया था मगर माकपा के भारी विरोध के चलते ऐसा हो नहीं पाया था। एक बार फिर वही बात कह रहा हूँ कि समय समय की बात है क्योंकि आज माकपा भी उस स्थिति में आ गई है ढूंढने पर भी कहीं दिखाई नहीं देती।
कांग्रेस के उदारवादी चेहरा अशोक गहलोत इस समय कर्नाटक में मौजूद है और मेरा निजी तौर पर मानना है कि इस उठापटक के बीच जोड़ तोड़कर काम बना लेने के लिए और रूटों को मना लेने के लिए पूरी कांग्रेस में अशोक गहलोत से बेहतर कोई चेहरा दिखाई नहीं देता। दिग्विजय सिंह की सुस्ती की वजह से गोवा में कांग्रेस का जो हश्र हुआ उसके बाद अशोक गहलोत को पहले ही दिन से राहुल गांधी के साथ दिखाई देने की नीति कांग्रेस के लिए अच्छे दिन लेकर आयी है।
एक राजस्थानी ही समझ सकता है कि अशोक गहलोत क्यूं बिन माँगे ही देवेगौड़ा के लिए आगे बढ़ो बढ़कर समर्थन का ऐलान करवाने के पक्षधर रहे होंगे। बतौर अध्यक्ष राहुल गांधी का यह पहला चुनाव है और इस चुनाव में जैसे तैसे सम्मानजनक स्थिति बना लेना ही आने वाले चुनावों में अध्यक्ष जी के लिए कुछ कॉन्फिडेंस दे पाएगा।
आने वाले दिन इतने सीधे नहीं रहेंगे और कर्नाटक में शुरू हुआ टी टीट्वेंटी का मैच कई नए मोड़ लेकर आएगा। मैं आज भी देवेगौड़ा कि सदन वाली बात नहीं भूला हूँ मगर मन में छुपे बग़ावत के तेवर कांग्रेस के समर्थन से देवेगौड़ा की सरकार बनाने के बाद अब मुझे कोई और बाग़ी नेता को अपना रोल मॉडल बनाने के लिए प्रेरित करेगा। यह इतना आसान नहीं रहेगा मगर राजनीति और आदर्श दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं।
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