किसी पाठक ने स्क्रीनशाट भेजा तो नज़र गई कैसे फर्जीवाडे में अव्वल अखबार चुनावी मुद्दों को भटका रहा है और कैसे अपनी ख़ुद की क़ाबिलीयत पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
शिक्षक संघ, रोड़वेज़ कर्मचारी मुद्दा ही नहीं इस बेतुके संपादकीय के मुताबिक
इस अख़बार के मुताबिक़ सीकर में स्मृति वन चुनाव के लिए एक बड़ा मुद्दा है जबकि सीकर की 80 प्रतिशत जनता अभी तक या तो कभी स्मृति वन गई ही नहीं है या भूले भटके एक दो बार घुसते ही निकल आई है। इसका अंदाजा हमने पूर्व में एक विज़िट के दौरान वहाँ के रजिस्टर से लगाया था। जहाँ तक याद आता है पिछले पूरे साल में स्मृति वन के लिए भी कोई ध्यान आकर्शित करने वाला प्रदर्शन नहीं हुआ है न ही किसी दल ने निरंतर रूप से स्मृति वन के बारे में उतने ज्ञापन दिए हैं जिनसे ज्यादा शिक्षक संघ (शेखावत) या रोड़वेज़ कर्मचारियों ने दे दिये हों।
सुबह के समय 80- 150 के बीच लोग ज़रूर घूमने आते हैं मगर उसमें भी न अगर आप ये मानते हैं कि सभी के सभी स्मृति वन के मुद्दे पर ही वोट करेंगे और जातीय समीकरण व अन्य प्रभाव उन पर कार्य नहीं करेगा तो यह एक बचपना है।
इस प्रकार की रिपोर्टों से साफ़ पता पड़ता है कि एडिटरों पर या तो दबाव रहता है मूल मुद्दों को जनता की नज़र से हटाने का या फिर वह ख़ुद ही असल मुद्दे नहीं जानते।
पिलानी में सरकारी कॉलेज को भी चुनावी मुद्दा बता रहे ये जनाब
पिलानी की शिक्षा व्यवस्था के स्तर को पूरा देश अनुसरण करता है और वहाँ पर सरकारी स्कूल होते हुए भी बच्चे निजी स्कूलों में पड़ते हैं जहाँ कि फ़ीस भी ज़्यादा नहीं है व शिक्षा का स्तर भी उच्च है। उच्च शिक्षा की तो बात ही छोड़ दीजिए मगर चुनावी मुद्दे में पिलानी में सरकारी कॉलेज में बताया जाना जबर्दस्ती का मुद्दा दिखाने की कोशिश है। दांतारामगढ़ जैसी जगह सरकारी कॉलेज नहीं होना बड़ा मुद्दा ज़रूर है मगर इसके साथ जब बिना काम के मुद्दे जोड़ दिए जाते हैं तो मूल मुद्दा पेपरों में छोटा दिखता है और माईंडवाश की तरह देखा जा सकता है।
पानी के मुद्दे को कम करके दिखाने की भरसक कोशिश
स्मृति वन और पिलानी में सरकारी कॉलेज को वरीयता देने और पानी के मुद्दे को नीचे रखना साफ़ दिखाता है कि पूरी तरह यह एक घटिया लेख है। ऊपर से बड़ी समस्या को सिर्फ़ इतना कहकर निपटा दिया गया है कि पानी का वादा पूरा नहीं हुआ है। पत्रकारिता की जो धार किसी भी पत्रकार का गौरव होती है उसका निम्न स्तर देखने को ऐसी रिपोर्टों में मिल जाता है। इससे बढ़िया तो दैनिक प्रकाशित होने वाले कार्टून हैं जिन्हें देखकर कम से कम हँसी तो आती है।
सीकर झुंझुनू चूरू की प्रमुख सीटों और जिलों के बाच अंतर ही नहीं पता लिखने वाले को
एक और हेडलाइन बनाकर प्रमुख सीटों की स्थिति में सीकर झुंझुनू और चूरू ज़िले के सीटों का ज़िक्र किया गया है जिसमें विधानसभा सीट की बात करते करते लोकसभा सीट का कंटेंट शुरू कर दिया है। कम से कम चार लाइने तो ठीक लिखी जाती जिसे देख कर लगता कि किसी को प्राथमिक शिक्षा वाले ने नहीं अख़बार के एडिटर ने इस संपादकीय को लिखा है ऊपर से ग्राउंड ज़ीरो की रिपोर्ट होने का और दावा किया गया है।
पाठक भ्रामक संपादकीयों से बचें
अभी शुरुआत है और अब हर दूसरे दिन आप को इसी प्रकार के मुद्दे भटकाने वाले लेख नियमित रूप से दिखाई देंगे
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